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15 Oct 2020 · 1 min read

आदमीयत का बाजारू दाम

**आदमीयत का बाजारू दाम**
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आज भाई चारा गुमनाम हो गया
माँ जन्मा भाई भी बेनाम हो गया

साथ साथ खेले जो संग संग रहे
बातिनी बात में कोहराम हो गया

मतभेद मनभेद का आधार स्तंभ
प्रेम विचारधारा में विराम हो गया

गरजने वाले बादल बरसते नहीं
ख़ामख्याली का यूँही नाम हो गया

जिद्दोजहद में कटता रहे यूँ सफर
सफ़री का जीवन निष्काम हो गया

शेख़ीबाजी के अक्सर बनते महल
शेख़ी और फ़रेब सरेआम हो गया

मनसीरत ढ़ूढें इंसानियत यहाँ वहाँ
आदमीयत का बाजारू दाम हो गया
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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