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14 Oct 2020 · 1 min read

जो था पत्थर पिघल गया कैसे

कर गई काम अब दुआ कैसे
जो था पत्थर पिघल गया कैसे

जब दुआ उसको दी है जीने की
मिल गई उसको फ़िर सज़ा कैसे

ख़ुद परिन्दा गया है पिंजरे में
कोई कर दे उसे रिहा कैसे

पूछती है सवाल ये दुनिया
वो किनारा मुझे मिला कैसे

पहले सोचा के ये चढ़ा भी नहीं
अब उतर जाए ये नशा कैसे

एक हल्की सी सुगबुगाहट थी
बन गई सबकी वो सदा कैसे

हो गईं दूरियां पता न चला
फ़ासला इतना भी बढ़ा कैसे

जब लगाया है रोज़ ही मरहम
ज़ख़्म फ़िर हो गया हरा कैसे

आपने हमने जब नहीं चाहा
सिलसिला मिलने का मिटा कैसे

आज हैरत की बात लगती है
वक़्त लेकर गया क़ज़ा कैसे

प्यार ‘आनन्द’ है अगर समझो
फूल सहरा में वो खिला कैसे

– डॉ आनन्द किशोर

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