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12 Oct 2020 · 1 min read

वही जो मेरी दवा रहा था

वही जो मेरी दवा रहा था
मरज़ को मेरे बढ़ा रहा था

वो फिर से आँसू बहा रहा था
बहुत दिनों तक जुदा रहा था

बदन की मेरे रिदा रहा था
कभी न ये फ़ासला रहा था

वो गीत उल्फ़त का गा रहा था
वो दिल की धड़कन बढ़ा रहा था

डुबा के माना वो नाव मेरी
यकीन जिस पर सदा रहा था

है आज उसमें सभी बुराई
कभी वही तो भला रहा था

उसे कहा है बुझा दे इसको
जो आग घर को लगा रहा था

वही अँगूठा दिखा रहा है
मेरा वही रहनुमा रहा था

सराब में वो भी फँस गया है
जो सागरों में सदा रहा था

वो आज भी तो मेरा ख़ुदा है
जो कल भी मेरा ख़ुदा रहा था

शब्दार्थ:- सराब=मृगतृष्णा/भ्रमजाल

डॉ आनन्द किशोर

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