Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
10 Oct 2020 · 1 min read

फ़रिश्ता

फ़रिश्ता

कौन था वो
कहाँ से आया था
शायद फ़रिश्ता था कोई
चीर चीरा निर्मम दरिंदों ने जब
लाज की चादर से दामन ढक गया
देह को चुभती जग की काँटों सी निगाहें
आंगन फूलों का चितवन महका गया
भीगे पट सी पीड़ा लिपटी रहती थी तन से
हृदय में चिर संचित अनुराग भर गया
अपमान की सुलगती थी जवाला हृदय में
तपती श्वासों पर मेघ सा बरस गया
कोरे काग़ज़ सी अनलिखी जीवन की पाती
सपनों के नभ पर इन्द्रधनुषी रंग भर गया
नीरवता बसती थी उर के हर कण में
वह नूपुर सी रून झुन झंकार भर गया
हाँ वो फ़रिश्ता ही था

रेखा

Loading...