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5 Oct 2020 · 1 min read

दर्द का पारावार नहीं ..

दर्द का पारावार नहीं..

मैं तुम और वो
दोस्त यार या रिश्तेदार
दर्द रिश्तों में पनपता है
वरना इसका अपना वजूद कहाँ
कभी मीठा सा अहसास बन
तो कभी पैनी सी चुभन
अक्सर रुहानि बन कटार
दिल के टुकड़े कर जाता चार
दर्द का पारावार नहीं
आ बसता हर कहीं
कोई दस्तक नहीं
बस आ टपकता यूँही
बिन बुलाए मेहमान की तरह
घर कर लेता अंतर्मन में
सोच में जीवन में
जूझता मन इसे उतार फेंकू
पुराने लिबास की तरह
पर लिपटा रहता रूह से
यह साँस की तरह

रेखा

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