बेटियां हमारी — बेमौत ना मरे !!!!
यह संस्कृति तो नहीं थी हमारी, बेटियों पर आया संकट भारी।
भेड़िए बनकर लूट रहे हैं, मानवता मरी जहां सारी की सारी ।
कानून का जिनको खौफ नहीं, क्या इन पर कोई रोक नहीं।
कैसा समाज रच बैठे हम, सहे यातनाएं हर बार क्यों नारी ।।
बलात,बलात,बलात कब तक इस शब्द को सुनते पढ़ते जाएंगे।
बहन बेटियों के लिए क्या, हमारी अंखियों में आंसू नहीं आएंगे।
ढूंढो सारे दरिंदों को, सबको मिल करना पड़ेगी तैयारी।।
क्या लिखूं ?कैसे लिखूं ?आंखें मेरी नम है।
लुटे बेटियां ,जले बेटियां ,आती मुझे शरम है।
पुरुष हैं हम, प्रधानता हमारी, क्यों मरना उनका जारी।
जरा चिंतन करें ,उनके लिए हमारा ,क्या धरम है ।।
चार आठ दिन ,मीडिया में छा जाते है
संगीन थी घटना ,सब बिसर जाते हैं
तभी तो वहशी दरिंदे ,फिर उठ खड़े हो जाते हैं।
आओ कुछ ऐसा करें ,बेटियां हमारी बेमौत ना मरे।
अनुनय हम सब मिलकर, जटिल समस्या सुलझाते हैं ।।
राजेश व्यास अनुनय