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2 Oct 2020 · 1 min read

असि की धार

असि की धार

कैसा महिसासुर जन्मा
सोचे जननी झरते नीर
मानव कब दानव बन गया
समझी न औरत की पीड़

पर तू क्या मारेगा मुझे
तू मुझसे ही तो जन्मा है
ख़ुद का तेरा वजूद क्या
अस्तित्व तेरा मेरी ही करुणा है

मुझसे ही बल पा कहता
मुझको ही अबला
क्यूँ भूलता अभिमानी तू
मेरे ही आँचल में पला

लड़ सकती हूँ अपनी लड़ाई
कर लो जितने वार
ढाल नहीं तो क्या हुआ
बन सकती हूँ असि की धार

स्वाभिमानी जीवन मेरा
नहीं तुम पर अवलंबित
तेरे दुष्कर्म तेरा पतन
करते कोख कलंकित

रेखा

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