सदा पिछला जो गुज़रा है ज़माना याद आया है
सदा पिछला जो गुज़रा है ज़माना याद आया है
नये पर कम भरोसा है पुराना याद आया है
नदी का झूमकर वो गीत गाना याद आया है
समुन्दर में नदी का वो समाना याद आया है
इशारों से कभी कहना बताना याद आया है
लजाकर मुँह में उंगली को दबाना याद आया है
दिखा है सामने रुतबा मुहब्बत का ज़माने में
मुझे अपना मुहब्बत का फ़साना याद आया है
अदा भूले नहीं उनकी वो शरमाना वो इठलाना
सदा हंसते हुये उनका वो आना याद आया है
कभी आते अगर जल्दी बड़े बेचैन रहते थे
लगाकर वो चले जाते बहाना याद आया है
बिना ही बात के हम पर वो झुंझलाना बिगड़ जाना
बड़े ही नाज़-नखरे थे मनाना याद आया है
बहारें चूमती उनके क़दम गुलशन दिवाना था
ग़ज़ब था शोख़ियों में गुनगुनाना याद आया है
बड़े देखे हैं हमने भी अना में जी रहे हैं जो
मगर ‘आनन्द’ को सर ये झुकाना याद आया है
– डॉ आनन्द किशोर