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30 Sep 2020 · 1 min read

मौत पर तमासा

जिंदगी की बिसात पर मौत का तमाशा हो रहा ।
दरबार मे हर अवाम न्याय का प्यासा हो रहा ।

हर राह पर खींचते नोचते तोड़ते मरोड़ते
खुले बाज़ार में दरिंदगी का जालसा हो रहा ।

मानवता बिक गई जिस्म की खरीददारी में
हर शख्स बेटियां के रक्त का पिपासा हो रहा।

बेटियां है ये बिन अपराध लाखो सजा झेलती
उसूलों को ढकता ,कानून कुहासा हो रहा ।

खुद सम्भालों अपनी तेज खड्ग चाप सायक
यहाँ केवल नित नया झांसे पे झांसा हो रहा ।

– जय श्री सैनी ‘सायक’

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