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27 Sep 2020 · 1 min read

" दृष्टिभ्रम "

कोहरे के धुंधलेपन में
दूर दिखता क्षितिज
मन की धुंधली
आशाओं सा धुंधला क्षितिज ,

आँधियों के गहरे कणों में
ढ़कता क्षितिज
बची इच्छाओं के कणों सा
किरकिराता क्षितिज ,

तेज दुपहरी के ताप में
तपता क्षितिज
मृगतृष्णा की चाह में
आशान्वित क्षितिज ,

मेरी तरह आस लगाये
बैठा क्षितिज
मिलन के पल का
प्रतीक्षारत क्षितिज ,

मैं तुम्हारे जैसी हूँ
तुम मेरे जैसे क्षितिज
लोगों को भ्रमित करते
हम दोनों क्षितिज ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 24/09/2020 )

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