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25 Sep 2020 · 1 min read

सच्ची मगर थी बात मेरी बात काट दी

करने नहीं दी मुझको शुरूआत काट दी
सच्ची मगर थी बात मेरी बात काट दी

चालें तमाम उसकी तो मालूम थी हमें
चालाकियां अदू की हरिक घात काट दी

मज़बूरियाँ रहीं हैं सदा ही ग़रीब को
छप्पर के उस मकान में बरसात काट दी

पैसे का था ग़रूर बड़ा उसको खामखां
किस्मत ने उसकी सारी औक़ात काट दी

बेकार आदतों से तबाही उसे मिली
ठोकर लगी तो उसने ख़ुराफात काट दी

तन्हाइयों ने रात में सोने नहीं दिया
तेरे बिना तमाम मैंने रात काट दी

रक्खे सहेज कर थे कई ख़्वाब आँख में
उल्फ़त की यादगार वो सौग़ात काट दी

‘आनन्द’ अब कोई है न मुश्किल हयात में
माँ की दुआ ने ज़ीस्त की आफ़ात काट दी

डॉ आनन्द किशोर

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