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24 Sep 2020 · 1 min read

क्यूँ एक भी ग़लती रही

ये सोच ही चलती रही
क्यूँ एक भी ग़लती रही

रौशन महल होता रहा
बस्ती मगर जलती रही

वो तंज ही करता रहा
ये बात पर खलती रही

सुनते हुये वो सो गया
गर्दन मगर हिलती रही

फिर जीत पाया इस दफ़अ
मां की दुआ फलती रही

आया नहीं वो आज फिर
ये शाम भी ढलती रही

मालूम होता किस तरह
झूठी वफ़ा छलती रही

पाने की तुझको आरज़ू
दिल को मेरे दलती रही

आनन्द की चाहत मगर
सारी उमर पलती रही

डॉ आनन्द किशोर

2 Likes · 2 Comments · 257 Views
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