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24 Sep 2020 · 1 min read

चांद

आज फिर चांद बदल गया
अभी शाम ही को देखा था
धूल से भरा
मटमैला
रेंगता मेरे घर की ओर
लगा यूं कि
बड़ा खिन्न था
बदरंग सा
दिशाहीन हो चला था
रात बढ़ गयी
पहर बीत गये
दूर तक
पर चांद अभी भी वहीं खड़ा है
बदला बदला सा
भयभीत मुझे भी कर चला..
मनोज शर्मा

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