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23 Sep 2020 · 1 min read

राज्यसभा में माननीयों का कदाचरण

उच्च सदन में धूमिल कर दीं, सभी मान्यमर्यादाएं
माननीयों ने किया कदाचरण, प्रजातंत्र में नहीं थी ऐंसी आशाएं?
संसद के इतिहास में, निश्चय यह काला दिन है
माननीय खुद ही सोचें, क्या पद के अनुकूल आचरण है?
माननीय होकर भी आप, हिंसक हो जाते हैं?
खुद ही सोचें? क्या अंतर है, सांसद और एक गुंडे में?
सहमति असहमति, लोकतंत्र की खूबसूरती होती है
अपनी अपनी बात रखने की, एक मर्यादा होती है
फाड़ रहे हो नियम पुस्तिका, आसंदी के माइक उखाड़ते हो?
गला पकड़ मार्शल को, घूंसे से आप मारते हो
अपशब्दों का करते हो प्रयोग, हिंसक हो जाते हो
जन प्रतिनिधि हैं आप, आदर्श आपको रखना हैं
आने बाली पीढ़ी को, संस्कार आपको देना है
जनता देख रही है सब, क्या आप नहीं जानते हैं?
या संसदीय परंपराओं को,आप नहीं मानते हैं?
आशा है माननीयों से, संसदीय परंपरा निभाएंगे
आगे से ऐसे दुखद क्षण, संसद में न आएंगे

सुरेश कुमार चतुर्वेदी

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