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20 Sep 2020 · 1 min read

कभी भी दिल से हमें तुम भुला न पाओगे

कभी भी दिल से हमें तुम भुला न पाओगे
किसी भी और से हरगिज़ निभा न पाओगे

छुपा के राज़ जो रक्खा बता न पाओगे
हमें न देख सकोगे जता न पाओगे

बुझा दिया है तुम्हीं ने दिया मेरे दिल का
चराग़ अपने भी दिल का जला न पाओगे

मिटा तो देते अगर दूसरे ने हो लिक्खा
जो नाम हमने लिखा वो मिटा न पाओगे

कभी जो तुम भी सुनोगे कमी तुम्हारी भी
कभी किसी की कमी तुम गिना न पाओगे

कभी ग़रीब को देखो कभी ग़रीबी को
नयन में ख़्वाब हंसी तुम सजा न पाओगे

सितम कभी जो अगर पड़ गये तुम्हें सहना
कभी किसी को जहाँ में सता न पाओगे

भले हैं एक से दो यह बड़े बताते हैं
कभी अकेले घरौंदा बना न पाओगे

चले तो आए यहाँ मर्ज़ियाँ तुम्हारी थीं
मगर यूँ छोड़ के ‘आनन्द’ जा न पाओगे

डॉ आनन्द किशोर

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