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20 Sep 2020 · 1 min read

हिज़्र में उसकी मर नहीं गया मैं

हिज़्र में उसकी मर नहीं गया मैं
टूट कर भी बिखर नहीं गया मैं

रात भर चाँद तारे ही देखे
रात भर अपने घर नहीं गया मैं

छोड़ आया था जिस गली को फिर
उस गली उम्र भर नहीं गया मैं

मेरा दिल बार बार कहता रहा
पास उसके मगर नहीं गया मैं

आज भी इश्क करते हैं ‘सागर’
चोट खाकर सुधर नहीं गया मैं

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