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17 Sep 2020 · 1 min read

अपने अपनों का

है मेरी इच्छा शहर के
शौर-गुल से दूर गाँव के बीच बसे
मेरी दादी के खपरैल और
माटी की सुगंध से भरपूर घर जाने की

है वहाँ इन्सानियत
मानवता और अपनापन

गायों के रंभाने की आवाजें
बैलगाड़ियों की घरघराहट बैलों की घंटियाँ
खेतों पर लहलहाती फसलें
दादी के घर जाने का मन होता है

भर गया है मन शहरों की चकाचौंध
धोखेबाजी और बनावटी मुस्कान से

भा गया है अब तो दादी का गाँव
सपने साकार करने का
अपने अपनों से मिलने का

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

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