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28 Aug 2020 · 1 min read

तुम

तुमने चाहा ही नहीं, हालात तो बदल सकते थे…
तुम्हारे आंसू मेरी आंखो से भी निकल सकते थे….
तुमने समझा ही नहीं वफा की कीमत को वरना….
नरम लफ़्ज़ों से तो पत्थर भी पिघल सकते थे…..
हम तो ठहरें ही रहे झील के किनारे पानी की तरह…..
अगर दरिया बनते तो बहुत दूर निकल भी सकते थे।।

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