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13 Aug 2020 · 1 min read

गज़ल:- चल झूठी

तुझसे कमतर चाँद का यौवन, चल झूठी
देखा भी है तुने दर्पण, चल झूठी

कहती है तूँ, बन कर साँप लिपट जाऊँ
जिस्म नहीं होता है चंदन, चल झूठी

तूँ लड़की है, अम्बर की बदली है कब
नैनों से बरसेगा सावन, चल झूठी

मुझसे तेरा पहला पहला इश्क़ है ये
छोड़ चुकी है अब तक छप्पन, चल झूठी

दोस्त मेरे, लाये हैं तेरा शादी कार्ड
तूँ भी होगी गैर की दुल्हन, चल झूठी

वर्ना हिज़्र में झील-सी आँखें जल जाती
तूने अश्क़ बहाये नौ-मन, चल झूठी

मिट्टी के मटके को मिट्टी होना है
इतना ही है जीवन-दर्शन, चल झूठी

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