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9 Aug 2020 · 1 min read

कब जिंदगी की शाम हो जाए

रवि शंकर साह, बलसारा
जिंदगी की कब शाम हो जाये,
धड़कने कब निस्तेज हो जाये,पता नहीं चलता।

ग़मो से हमारा पुराना नाता है
कब हमें मिल जाए, पता नहीं चलता ।

वक़्त के हाथों की कठपुतलियां हैं सभी।
वक़्त कैसा नाच नचाये, पता नहीं चलता ।

किस्मत की लकीरों पर यकी नहीं है मुझे
लेकिन किस्मत कब बदल जाये? पता नहीं चलता।

जिंदगी में ठोकरे खाते हैं बहुत ।
किस ठोकर से जिंदगी बदल जाये, पता नहीं चलता ।

जिंदगी के रंग है बहुत
जिंदगी में कौन सा रंग चढ़ जाये, पता नहीं चलता।

जिंदगी का सफर बहुत लंबा है।
कौन सा सफर आखिरी है पता नहीं चलता।

जिंदगी की कब शाम हो जाये,
धड़कने कब निस्तेज हो जाये, पता नहीं चलता।
◆◆◆
©®सर्वधिकार सुरक्षित — रवि शंकर साह
बलसारा बैद्यनाथ धाम, देवघर, झारखंड

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