उदघोष
उदघोष
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अब न कब्र खोदेंगे
न ही दफनाएंगे,
अब तो उन्हें जिंदा ही
चील कौओं को खिलाएंगे।
शराफत बहुत कर ली हमनें,
खूनी भेड़ियों से अब नहीं
मानवता दिखा पायेंगे।
अब तो हम भी
ताल से ताल मिलायेंगे,
उनकी लाशों पर यारों
मिलकर रामधुन गायेंगे।
जय श्री राम जय श्री राम का
उदघोष करायेंगे।
✍सुधीर श्रीवास्तव