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26 Jul 2020 · 1 min read

बादल भी आज टूट कर रोया है

गरज कर गिर पड़ी बिजलियां
बादल भी आज टूट कर रोया है

तुमने देखा नहीं तो क्या हुआ “जाना”
हमने भी आंखों को खूब धोया है

धूलि आंखो के सुर्ख आंगन में वस्ल के
ख़वाब ने तेरे नाम का चन्दन बोया है

ख्वाब के आंगन में मैं अकेली तो न थी
सुबह तलक ख्वाब हमने साथ बोया है
~ सिद्धार्थ

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