Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
21 Jul 2020 · 2 min read

अम्मा के फुटाने

**घर से स्ट्रीट लाइट के नीचे तक …..मज़बूरी की दास्तां **

चने के भुने हुए दाने, जिसे कहते है लोग फूटाने,
इन फूटानो की हक़ीक़त का राज़ बहुत ही कड़वा है,
कुछ मज़बूरीयों की उलझनों से,
कुछ अनाथो के चूल्हे से,
इसकी सच्चाई अगर सुन सको, तो ये जुड़ी है किसी के रोने से……

कुछ बेजान से चेहरे, मेरी आँखों पे छाया करते है,
क्या बात है उनके सीने में, कुछ तो दफनाये से लगते है,
उन रूखी आह भरी आँखों का रोना, किसको यहाँ दिखता है,
उन प्यासे कंठो की कराह, कौन भला यहाँ सुनता है!!

वो दादी अम्मा बूढ़ी सी….
उन्हें एक ललक -सी होती है,
हर चलते -फिरते चेहरे को दीन दृष्टि से तकती है,
जब कोई देखे उनकी तरफ, वो कुछ इशारा करती है,
बेटा ले लो कुछ थोड़ा ही, ये मन ही मन कहती है !!

कुछ हैवानियत के चरित्र, यहाँ भी दिखाई पड़ते है,
वो अमीर ही सही….
वो लोग यहाँ आकर, कुछ फूटानो को झट्ट से मुँह में भरते है,
बिन पैसे दिए ही, वो मुस्कुराया करते है,
उस अम्मा की जुबानी, क्यूँ बेखौफ न रहती है,
वो क्यूँ कुछ नहीं कहती है, वो क्यूँ कुछ नहीं करती है !!

शायद…..
उनके पलकों के साये में, कुछ नादान शख़्स झलकते है,
अपनों की खुशी के खातिर, हरपल जीते- मरते है,
हर छोटे -बड़े कामों में, ख़ुशी की वजह यूँ ही ढूंढ लेते है,
वो हर गम में मुस्कुराना बखूबी सीख लेते है..!!

मैं उस अम्मा की बात कर रहा हूँ….
जो स्ट्रीट-लाइट के नीचे पूरा दिन गुजारा करती है,
वो बूढी अम्मा आज भी मेरे, नज़्म का हिस्सा बन जाया करती है,
ज़ब भी उनसे फूटानो की मांग करता हूँ,
उनके चेहरे का ना कोई ठिकाना रहता है,
वो दो-चार दानो की सौगाते मुझपे, यूँ ही न्योछावर करती है,
वो मेरी खुशी के खातिर “ले जा न यार “कहती है…!!

ना जाने मेरे पैसे लेने में, वो क्यूँ हरबार झिझकती है,
मेरे कुछ रुपयों की मदद को, एहसान सा शायद समझती है,
इसलिए उसकी दीन दया मुझपे, हरबार बरसती रहती है,
मुझको उनकी एक बात, दिल को ज़रा-सी लगती है,
अपनी मेहनत का हर्जाना, दूसरों को सौप दिया करती है,
फिर भी ना जाने उनकी मासूमीयत,
मेरे दिल को भली लगती है…
मेरे दिल को भली लगती है…!!
अम्मा !!
❤Love Ravi❤

Loading...