Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
21 Jul 2020 · 1 min read

माँ(1)

विश्वास नहीं होता है ,चली गई यूं छोड़ हमें,
सारी दुनियाँ दिखती है,पर तू ही दिखती नहीं हमें।
अंर्तमन से चित्र एक पल ,धुंधला कभी नहीं होता,
एक बार आकर तू क्यों, गले लगाती नहीं हमें।
अपने अंर्तमन की पीड़ा का ,भंडार छिपाये रखा था,
आकर क्यों पीड़ा की गठरी, खोल दिखाती नहीं हमें।
नादान तेरे हैं ये बच्चे, तनिक तरस न आता क्या?
सपने में ही आकर बस ,ममता अपनी दिखला दे हमें।
✍सुधीर श्रीवास्तव

Loading...