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18 Jul 2020 · 1 min read

आदमी

आदमी मुक्कमल हो तो कोई बात बने भले
घर में गर दाना न हो तो कैसे न दिन रात खले

हमरी देहरी पे तो दिया भी बुझा हुआ रक्खा है
कतरा ए रौशनी झांकें जब चांद गगन में चले

हमें पुर उम्मीद किया गया था बरसों पहले
उस उम्मीद को उनके ही खींसे में न टटोले तो काम कैसे चले !
~ सिद्धार्थ

क्या किजे जब इंसान में इंसान मर गया
अंदर बहते नदी में विष जैसा कुछ घुल गया !
~ सिद्धार्थ

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