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16 Jul 2020 · 1 min read

शोहरत का ज़रिया नहीं बनती

शोहरत का ज़रिया नहीं बनती
ग़रीबी कभी सुर्ख़ियाँ नहीं बनती

सबको साथ लेकर चलना पड़ता है
एक आदमी से दुनिया नहीं बनती

ग़र गिले शिकवे हल कर लिए जाएँ
दिलों के दरमियाँ दूरियाँ नहीं बनतीं

आख़िर ऐसे घर में जाके रहना है ‘अर्श’
जिसमें कभी खिड़कियाँ नहीं बनती

2 Likes · 3 Comments · 301 Views
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