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14 Jul 2020 · 1 min read

इंसाफ दुनिया का

जहां दूर तक कोई साहिल नहीं था
मैं दरिया-ए उल्फत में डूबा वहीं था

गुलों के नगर में जो गोशा नशीं था
बड़ा खूबसूरत वह बेहद हसीं था

यह इंसाफ दुनिया का अच्छा नहीं था
बहारे वही थी, जहां हमनशीं था

खबर ही नहीं थी पता ही नहीं था
सितमगर हमारे ही घर में मकीं था

तसव्वुर में जब तक वह जोहरा जबी था
उजाला मिरै दिल पे मसनद नशीं था

जो मानिंद खुशबू के दिल में मकीं था
मुझे उसकी महरो वफा पर यकीं था

कि जिस रास्ते का किनारा नहीं है
तुम्हें ऐसे रस्ते पे जाना नहीं था

जिसे मैंने ‘अरशद’ न देखा अभी तक
मुकद्दर का मेरे सितारा वही था

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