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11 Jul 2020 · 1 min read

ग़ज़ल

काफ़िया-आया
रदीफ़-जाए

चलो मुकदर को फिर से यूं आज़माया जाए।
खुद की काबिलियत पर गौर फ़रमाया जाए।

वो पन्ने जिन पर कुछ लिख न पाए थे इक रोज़;
उनको तुम्हारे ख़त के साथ जल में बहाया जाए।

यूं तो बाकी तेरी अब कोई निशानी नहीं मेरे पास;
ख्वाबों में भी क्यों तुझको फिर यूं बुलाया जाए।

जाने क्यों लगता है इक रोज़ मुलाकात होगी अपनी;
मुस्कुराता हूं क्यों हाल अपना तुझको बताया जाए।

मैं खामोशी से चला जाऊंगा शहर से तेरे बहुत दूर;
शर्त ये है फिर न मुझ जैसे आशिक को सताया जाए।

कामनी गुप्ता***
जम्मू !

3 Likes · 3 Comments · 433 Views
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