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9 Jul 2020 · 1 min read

ग़ज़ल खूब कहता हूँ

मैं ग़ज़ल खूब कहता हूँ सुन लीजिये
ख़्वाब आँखों में कोई तो बुन लीजिये

इन ग़मों में ही गुम है घड़ी खुशनुमा
होंगी दुश्वारियाँ किन्तु चुन लीजिये

ज़ख़्म कैसे भी हों यार भर जायेंगे
कोई हल इन दुखों का जो चुन लीजिये

अब अकेले गुज़ारा भी दुश्वार है
हमसफ़र आज कोई तो चुन लीजिये

जिसपे ये सारा आलम थिरकने लगे
इस ग़ज़ल के लिए चुन वो धुन लीजिये

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