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12 Jun 2020 · 1 min read

नसीहत,

शक़्ल-ओ-नाज़ को मर जाने दो,
खुद की पहचान अब बनाने दो,
वह मुझे कितना भी बर्बाद करे,
करो सब्र मुनासिब समय आने दो,
शेर टकरा के गिरा नहीं करते हैं,
बेख़ौफ़ होकर रोज फिरा करते हैं,
ग़ैर की गुलामी तो देती है ज़िल्लत,
ऐसे इंसान खतरनाक मरा करते हैं,

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