Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
10 Jun 2020 · 1 min read

शाम सा ठहरा ही रहा ।

मैं कोई शाम सा ठहरा ही रहा
तू वक़्त सी थी गुजर जो गयी
मेरे दिल पर तुम्हारा ही तो पहरा ही रहा
लबों से छू लू ऐसी कोई बात नही
तुम्हें एक पल ना सोचू ऐसी कोई रात नही ।
तू बूँद सी बादलों से बरसती रही
मैं दरिया बन यू ही बहता ही रहा ।
मांगू जो कभी खुदा से जिक्र तेरा ही रहा
हर ख़्वाब जब आयी तो फ़िक्र तेरा ही रहा ।
मेरी धड़कनों को जो थाम ले वो बस तुम ही हो
मेरी हर ख़्वाब को भी बुन ले बस तुम ही हो ।
धड़कनों को भी धड़कना अब जरुरी नही
ये सब लिखना मेरी कोई मज़बूरी नही

:-हसीब अनवर

Loading...