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9 Jun 2020 · 1 min read

ग़ज़ल

मैं जानता हूँ कि अब तू ग़ैर है
मुझे जीना भी तेरे बग़ैर है

फिर भी मोहब्बत है तुझसे
मेरे दिल को मुझसे ही बैर है

बसा रखा है तुझे इन आँखों में
मेरा मन ही बना मेरा दैर है

रोज़ रुलाती हैं मुझे यादें तेरी
जीने नहीं देती ऐसी ये मैर है

तेरे दीदार को आज भी ये दिल
करता तेरी गलियों की सैर है

✍️ आलोक कौशिक

(साहित्यकार एवं पत्रकार)

पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101,
अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com
चलभाष संख्या- 8292043472

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