Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
31 May 2020 · 1 min read

कैसे कैसे ज़िन्दगी, बदले अपना रूप(दोहा ग़ज़ल)

कैसे कैसे ज़िन्दगी, बदले अपना रूप।
कहीं पेड़ की छाँव है, कहीं जलाती धूप।।

अनपढ़ होना भी बड़ा, देखो है अभिशाप।
होता अक्षर ज्ञान बिन, जीवन अंधा कूप।।

मिले हुए अच्छे बुरे, दोनों रहते साथ।
इन्हें छानना है हमें, बना ज्ञान का सूप।।

रिश्ते रेशम की तरह, होते नाजुक डोर।
जिसे तोड़ती है बहस, मगर जोड़ती चूप।।

नहीं रहा अब’अर्चना’, ये जीवन आसान।
इस कोरोना का कहर, बना गले का लूप।।

31-05-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

Loading...