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21 May 2020 · 1 min read

समय का चक्र

समय का चक्र चला आज ऐसा
पुराने दिन वो फिर लौट आए
वो अपनो की महफ़िल जो खो गई थी शहर की चकाचौंध में,
आज लौट अाई वो शहरों के अंदर फिर वही रूप में,
जो आसमां रंगीन हुआ दशकों से सिर्फ काली धुंध से,
आज वो आसमां भी रंगीन हो रहा है लड़ते पतंग के पेंचो से,
कमाने जिंदगी को जीना जो छोड़ दिया था सभी ने,
आज उसी जिंदगी को भुला जीना शुरू कर दिया है सभी ने,
पुराने दिन जो एल्बम में कैद हो रख गए थे किसी कोने में,
आज वो यादों का पिटारा भी खुल गया सभी के घरों में,
वीरान हो गए हस्ते खेलते आंगन जो समय की रफ्तार से
आज फिर महक उठे वो मौज मस्ती और शरारतों की आवाज़ से,
आंगन को सुनसान और मायूस अपनों को कर जो गए थे सबसे दूर,
आज अपनी खुशी के लिए ही सही आए हम तो खिल गए सबके चेहरे के नूर,
पता चला हमें अब क्या कमाने के चक्कर में कमाया हुआ क्या छोड़ दिया,
जिंदगी जो गए थे कमाने उस जिंदगी का दरवाज़ा यह जमाना खोलना भूल गया

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