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16 May 2020 · 1 min read

कविता बहती सरिता

* कविता बहती सरिता *
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मेरी कविता बहती सरिता
भावों की बहती जल धारा

मन अंदर में उठें हाव भाव
विचार समेटती काव्यधारा

भेजे में मचती उथल पुथल
संवारती यह जीवन धारा

अनुभव चाहे जैसे भी हों
शब्दों को पिरोती हैं माला

गहराई समाई समन्दर सी
सुख दुख बटोरती है धारा

साहित्यिक सृजन है करती
समृद्ध करे साहित्य माला

द्वंद्वात्मक भरा भंवरजाल
उलझी संवरी मोती माला

सुखविंद्र भी कविताई करे
मनोभावों की जड़े माला
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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