Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
16 May 2020 · 1 min read

मां मन वीणा झंकृत कर दे

मां मन बीणा झंकृत कर दे, उर का अंधकार हर ले
प्रेम प्रीत उर में भरदे, आ जाए वो नव विहान
दुनिया खुशियों से भरदे, मां मन वीणा झंकृत कर दे
हट जाए अज्ञान अंधेरा, नव प्रकाश उर में भर जाए
बहे ज्ञान की पावन गंगा, जन-जन को ऐसा वर दे
मां मन वीणा झंकृत कर दे
कहीं न हिंसा द़ेष रहे, सब वैर भाव मिट जाए
चले प्रेम की पवन सुहानी, धरती और अंबर भरदे
मां मन वीणा झंकृत कर दे
ना जाति धर्म के झगड़े हों, न अगड़े हों न पिछड़े हों
आ जाए समभाव जगत में, ऐसा वर हर मन को दे
मां मन वीणा झंकृत कर दे
हर ओर सुहाना मंजर हो, शांत धरा और अंबर हो
नहीं प्रदूषण पहले जग में,मन बुद्धि निर्मल कर दे
निर्मल मन जन-जन को दे, मां मन वीणा झंकृत कर दे

Loading...