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29 Apr 2020 · 1 min read

यही तो जीवन है

भोर होते ही
दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर
हल्का-फुल्का नाश्ता कर
समस्याओं का टोकरा लेकर
आदमी घर से निकल पड़ता है।
उसमें होती हैं अनेक समस्याये
रोजी की समस्या
रोटी की समस्या
मकान की समस्या
दुकान की समस्याl
वह अपनी समस्याएँ
लोगों को बताता है
आकर्षक ढंग से सुनाता है
एक कुशल वक्ता की तरह
रोचकता से रूबरू कराता है।
समस्याओं के समाधान में
आई दिक्कतें दिखाते
उनको गिनते गिनाते
यही करते कराते
शाम को घर आता है।
रात बिता कर
अगले दिन पुनः
उसी उधेड़-बुन में
लग जाता है
यही तो जीवन है।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

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