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28 Apr 2020 · 1 min read

आँखें हमारी थीं

आँखें हमारी थीं,
सपने तुम्हारे थे।
कैसे तुमको बतलायें,
तुम हमको कितने प्यारे थे।
हुआ तुमसे इश्क,
यह खुशकिस्मती हमारी थी।
नहीं हुआ वस्ल,
बदकिस्मती यह भारी थी।
आँखों में अरमां सँजोये,
कटते तनहा दिन हमारे थे।
द्वारे पै तुम्हारे एक दिन,
देखा जलता दिया।
समझा मैंने तुमने इशारा,
रात में मिलने का किया।
न आईं तुम इन्तजार करते,
थक गये नयन हमारे थे।
अपने दिल की दासतां,
सबको सुनाता रहा।
तुम्हारी बेबफाई लोगों को-
बताता रहा।
हो जाता था अंदाज़े बयाँ तल्ख़,
याद आते जब सितम तुम्हारे थे।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

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