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24 Apr 2020 · 2 min read

कविता

क्यूँ री सखि भाग-4

लोग कहें नादान सखि री
कोई न मुझको भान सखि री
जीवन सफल बनाना है तो
कर ले उसका ध्यान सखि री

औरों की खातिर ही जीना
यही है सच्ची शान सखि री
अपने को सब बड़ा मानते
किसका किसको मान सखि री

तलवार सी जीह्व हो जाये
मिले न उसको म्यान सखि री
किस्मत से जो लड़ सकता हो
कौन एसा बलवान सखि री

ढूँडे से गर मिल भी जाये
कैसे हो पहचान सखि री
भूखे को तो अन्न चाहिये
चावल हो या धान सखि री

बन भिखारी दुनियाँ घूमे
करे न कोई दान सखि री
दो गज्ज लट्ठा मुझको चाहिये
क्या करने हैं थान सखि री

कैसे रिझाऊँ तुझको प्रीतम
नन्हीं सी ये जान सखि री
शाम सलोना कुछ नहीं मांगे
सुपारी मिसरी पान सखि री

सबके मन को खूव रिझाये
सरगम वाला गान सखि री
तुम तो हो अमृत के सागर
मैं कोयले की खान सखि री

जोर जोर से किसे रिझाऊँ
मीत धरे न कान सखि री
बंसी बजे तो सुध बुध खोऊँ
बड़ी सुरीली तान सखि री

भूखे भी तो भजन हो जाये
क्या करना जलपान सखि री
तेरा अपना कुछ नहीं पगली
क्यूँ करती अभिमान सखि री

जो होना है सो होता है
ईश्वर का फरमान सखि री
कौन मेरी कद्र करे अब
न दौलत न ज्ञान सखि री

मंज़िल तो है मिल न पायी
पैरों के मिटे निशान सखि री
सोच सोच कर दिल भी डूवा
बुझे मेरे अरमान सखि री

रात दिन ईन्तज़ार किया पर
आया नहीं महमान सखि री
गहरे गहरे जख्म मिले हैं
गिरती पड़ती जान सखि री

गौरव की मैं बात करुँ क्या
धुंधली पड़ गयी शान सखि री
अपने छोड़े खुद को छोड़ा
व्यर्थ गया बलिदान सखि री

क्यूँ भेजा दुनियाँ में मुझको
सोच रहा भगवान सखि री
अपनी भूख तो मिट न पायी
जीव किये कुर्वान सखि री

पग पग चलूँ पल पल सोचूँ
हो कैसे कल्याण सखि री
तुम जो चाहो वो मानूँ मैं
गर जो मिले वरदान सखि री

आँगन सूना गलियाँ सूनी
सूना दर मकान सखि री
कैसे पहुँचू मैं दर तेरे
मैं बिल्कुल बेजान सखि री

गंगा भी तो मैली हो गयीं
कहां करुँ स्नान सखि री
तू ही बता क्या करुँ मैं
जानूँ न गुणगान सखि री

ज्ञान ध्यान मैं कुछ न समझूँ
क्या करुँ व्खान सखि री
क्या दिया है तूने मुझको
कैसा तेरा विधान सखि री

मेरे कर्म तू हरदम देखे
तू बड़ा निगेहवान सखि री
तेरे चरण हैं मेरी म़जिल
क्यूँ लेते इम्हतान सखि री

घर मेरे जो वो आ जाये
करुँ कैसे आह्वान सखि री
पानी भर कर कैसे लाऊँ
जिस्म में ना है त्राण सखि री

अब तो मुझको जाना होगा
याद करे शमशान सखि री
कैसे खोलूँ मैं भव बंधन
पूजा से अनजान सखि री

दोष भी दूँ तो किसको दूँ
रही न मेरी आन सखि री
सारे झंझट छूट गये हैं
निराश सुखी है जान सखि री

सुरेश भारद्वाज निराश
धर्मशाला हिप्र

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