Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
22 Apr 2020 · 1 min read

इसी में जीवन पाओगे

आज विश्व पृथ्वी दिवस पर मेरी स्वरचित कविता माँ भारती के चरणों में समर्पित

आज न जाने देश ये मेरा,
खड़ा है किस चौराहे पर।
संकट के बादल हैं छाए,
जीवन – मृत्यु दो रहे पर।।1।।

मानव ही मानव का सेवक,
मानव ही बना शिकारी है।
मानव से मानव में फैली,
कैसी भीषण बीमारी है।।2।।

जब तक साथ दिया प्रभु नें,
हमनें हिम्मत नहीं हारी है।
हार मान रही है ये दुनियाँ,
कैसा ये बिकट प्रहरी है।।3।।

इस संकट ने जीवन में,
लाया ये कैसा मोड़ है।
अपना जीवन स्वयं बचने,
लगी ये अद्भुत होड़ है।।4।।

स्वच्छ प्रकृति के दोहन का,
लाभ उठाया तुमने भरपूर।
इसी कारण होना पड़ा,
घर में रहने को मजबूत।।5।।

अभी समय है जागो मानव,
वरना तुम पछताओगे।
प्रकृति का करलो आदर,
इसी में जीवन पाओगे।।6।।

स्वरचित कविता
तरुण सिंह पवार

Loading...