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23 Mar 2020 · 1 min read

पत्ते

अक्सर पार्क के किसी कोने में सिमटे नज़र आते,
डाल से टूटे सूखे पत्ते,
कहते व्यथा अपने जीवन की,
कि किस प्रकार वसंत आया,
और नवपल्ल्व बन इन्होंने था एक वट सजाया,
सूखा झाखड़ जब हरा हुआ,
कोमलता और हरियाली बने सुखद एहसास,
पादप में फैली नवजीवन की आस,
हरे पल्ल्वों से उसका मन हर्षाया,
नवयौवन हर पत्ते पर छाया,
धीरे धीरे समय बढ़ चला अपनी चाल,
सींचा पत्तों ने वृक्ष को,
जीवनदायी औषध बन बन के,
वृक्ष का सौंदर्य जगाया
उसे था फल और फूलों से भरपूर बनाया,
कालचक्र अपना वेग न छोड़ा,
अब पत्ते पीले लगने लगे थे थोड़ा,
अपना सर्वस्य देकर जिसे था प्रकाशमान किया,
उसी ने अब साथ छोड़ा,
कहाँ उस ने फिर साथ निभाया,
पीला हुआ पत्ता अब सूखा कहलाया,
आँधी ने भी अपना धर्म निभाया,
जर्द हुए पत्ते को जोर से हिलाया,
आखिरी आस भी जुड़े रहने की टूट गई,
सूखा पत्ता ज़मीन पर आया,
बैठा कोने में देखता रहता है अब,
अभी भी मांगता ख़ुशी पेड़ की,
और हुआ खुश हमेशा,
जब भी कोई नया पत्ता पेड़ पर आया …..

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