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20 Mar 2020 · 1 min read

-: हिंदी प्रेमी :-

मैं हिंदी प्रेमी हिंदी का,
रसपान कराने आया हूँ ।
मैं हिंदुस्तान की माटी में ,
हिंदी को बड़ाने आया हूँ ।

भारत तेरे भाल की बिन्दी,
न जाने कहाँ खो गई हिन्दी।
तेरे उज्ज्वल धवल कपाल पे मैं ,
हिंदी को जड़ाने आया हूँ।

मैं हिंदी प्रेमी हिंदी का,
रसपान कराने आया हूँ।

बहुत विरोधी तेरे बढ़ गए ,
कौन इन्हें समझाएं मां।
तेरे अतीत गौरव की गाथा ,
कौन इन्हें बतलाए मां।

मैं कविकुल का वंशज हूँ ,
कविता को ही गा सकता हूँ ।
मां मैं काले अंग्रेजों से,
युद्ध नहीं कर सकता हूँ ।

है जिनके अंदर ललक हिंदी की ,
उन्हें जगाने आया हूँ ।
मैं हिंदी प्रेमी हिंदी का ,
रसपान कराने आया हूँ।

– पर्वतसिंह राजपूत ‘अधिराज’
ग्राम सतपोन
मो . 8966828678

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