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18 Mar 2020 · 1 min read

फिर मंज़िल नहीं मिलती

पलक ख़्वाबों को निद्रा से कभी बोझिल नहीं मिलती
कदम रक्खे कहाँ कोई गली काब़िल नहीं मिलती

सभी ग़म भूलकर हँसना यही है ज़िन्दगी क्योंकी
हो जिनकी आँख में आँसू उन्हें महफ़िल नहीं मिलती

असर माटी का आ जाता है पौधों की ज़हनियत में
हो ग़र माँ वीर तो औलाद फिर बुज़दिल नहीं मिलती

खिले हों फूल बेशक और सफ़र भी हो हसीं लेकिन
मोहब्बत रास्तों से हो तो फिर मंज़िल नहीं मिलती

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