Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
18 Mar 2020 · 1 min read

तुम ही बाधाओं से लड़े नहीं

मंजिल मिलने को आतुर थी लक्ष्य तुम्हीं ने गढ़े नहीं
जीत तुम्हारी तय थी तुम ही बाधाओं से लड़े नहीं

हार मानकर बैठ गए तुम शिखरों की ऊँचाई से
तत्पर था पर्वत झुकने को तुम ही ऊपर चढ़े नहीं

नदियाँ तो खाली बैठी थीं अनुगामी बन जाने को
मगर भगीरथ जैसा हठ लेकर के तुम ही अड़े नहीं

पड़े हुए हैं पचड़े कितने काश्मीर की घाटी में
मुद्दे हल हो जाते पर तुम ही पचड़े में पड़े नहीं

देश तरक्की कर सकता था सत्तर सालों में लेकिन
मजलूमों का हाथ पकड़कर तुम ही आगे बढ़े नहीं

समझ गए होते जीवन की सच्चाई तुम भी लेकिन
हाथों में थी किताब पलटकर पृष्ठ तुम्हीं ने पढ़े नहीं

दे सकते थे छाया तुम भी बनकर वट सा वृक्ष घना
मगर कहूँ क्या ‘संजय’ तुम ही बीज सरीखा सड़े नहीं

Loading...