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17 Mar 2020 · 1 min read

गुमनाम बचपन

गुमनाम बचपन
छोटी सी उम्र में, लकड़ी बजाकर
खेल दिखाना, शुरू किया ।
हाथ में डमरू, पैर में घुंघरू
नाचना गाना, शुरू किया ।।

करता हुँ करतब, भीख मांग कर
हाथ फैलाना, शुरू किया ।
कभी ना देखा, अपनों का चेहरा
कभी ना उनसे, गिला किया ।।

जब से होश संभाला, मैंने
अपनों का कोई ना, पता मिला ।
किस बस्ती में, घर है मेरा
ढूंढने से भी, नहीं मिला।।

दर्द हैं आज भी मन में, मेरे
मालिक को मैं, कहां मिला।
हाथ में मेरे, दिया कटोरा
डंडे का लाल, निशान मिला।।

जालिम कोई ना, दया दिखाए
जिस दिन मुझे, रुपये ना मिला।
लिखा है किस्मत, में ही रोना
कोई ना मुझे, अधिकार मिला।।

रोज घूमता, दूर-दूर तक
एक ठिकाना ना,कभी मिला।
एक दिन घर पहुचाँ, ना समय पर
अंगूठा हाथ का,कटा मिला ।।

बाल मजदूरी है, महामारी
बच्चों को यह, अभिशाप मिला।
दर्द बयां करूं, आज आप से,
ऐसा मुझे क्यों, श्राप मिला।

छीना है बचपन, इक जालिम ने
किससे करूं मैं, शिकवा गिला
जब तक मिले, सजा ना उसको
मुझे ना कोई, न्याय मिला ।।

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