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11 Mar 2020 · 1 min read

घर

घर

बहुत बड़ी है यह धरती
बहुत बड़ा है यह जहान,
सर्वप्रिय लगता वह कोना
जिसे कहते हैं-घर-मकान!

कच्ची झोंपडी हो या बँगला आलीशान
घर से बेहतर नहीं कोई सुखद स्थान।
दुनियाभर का चाहे कर लो विचरण
’घर’ जैसा नहीं है कोई पुण्यधाम!!

अपनी मर्ज़ी चलती यहाँ,
नहीं दूसरा कोई धौंस जमाता है,
कच्चा-पक्का जैसा भी हो ’घर
मनमर्ज़ी का मालिक बनाता है।

औपचारिकताओं का नहीं कोई बंधन
जहाँ चाहे लेटो, बैठो पैर पसार।
बिखरा हो या व्यवस्थित हो,
दिल को भाता है अपना घर द्वार ।

तीर्थयात्रा हो कोई या गंगास्थान,
काशी , काबा हो या हरिद्वार,
अस्थाई ठौर-ठिकाने हैं सब,
असली सुख देता अपना घर-द्वार।
********
खेमकिरण सैनी
11.3.2020

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