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8 Mar 2020 · 1 min read

मुखौटा

दिन पर दिन
परत दर परत
भारी हो रहा मुखौटा
असली चेहरा अब
थकने लगा/उबने लगा…..
कब तक सहना होगा
इसका बोझ?
सच को झूठ से
छुपाना होगा
कागज के फूलों से
आ रही है खुशबू
कहना होगा ,कब तक?
मन मे आता है
उखाड़ दूँ/नोच दूँ
कर दूँ आजाद
और जी लूँ
सिर्फ सच बनकर
सांस ले सकूँ
खुल कर……
लेकिन रोक लेता है
हर बार ही
तनहा होने का भय
मुखौटों के जंगल में।।

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