Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
5 Mar 2020 · 1 min read

मेरे अपने

उत्सव बन जाता
जीवन का सफर,
स्वयं को पाती हूं
और भी सक्षम,
जब होता है
अपने आस पास
अपनों के
होने का एहसास…..
खामोशी जब
डराने लगती है
और एकाकीपन
भयभीत करता है,
प्रदीप्त कर लेती हूं
हर राह
अपनत्व के आलोक से….
कुछ सजे नाम से
तो कुछ बेनाम भी,
कई रंगों में
महकते…
सबको रखती हूं
स्वार्थवश सहेज कर
आंखों की नमी
प्यार की गर्माहट से…..
शायद हूं..
उस लता की मानिंद
जो गर्व से मस्तक उठा
बढ़ती जाती
पेड़ का आश्रय पाकर ।।

Loading...