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2 Mar 2020 · 1 min read

मुक्तक

ये न सोचो ये सजा देंगी तुम्हें
ये हवाएं तो मिटा देंगी तुम्हें

क़ुर्बते तुम मत बढ़ाओ हुस्न से
खाक़ में इक दिन मिला देंगी तुम्हे

प्रीतम राठौर भिनगाई

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