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1 Mar 2020 · 1 min read

वो शख़्स दो को हमेशा ही तीन कहता है

ग़ज़ल
वो शख़्स दो को हमेशा ही तीन कहता है।
कमाल फिर भी तो ख़ुद को ज़हीन कहता है।।

ज़माना उसके लिए महजबीन कहता है।
वो ख़ुद को फिर भी तो पर्दा नशीन कहता है।।

कहें जो सच तो है मुमकिन ज़बान साथ न दे।
मगर वो झूठ बहुत बेहतरीन कहता है।।

है टूटना इसे इक दिन ज़रुर टूटेगा।
गुमान है ये जिसे तू यक़ीन कहता है।।

करो किसी से भी मजहब के नाम पर नफ़रत।
बताये कोई हमें कौन दीन कहता है।।

हुनर भी खूब तिजारत का देखिए साहब।
सड़े हुए को वो ताजातरीन कहता है।।

बुराई करता है मेरी वो पीठ पीछे भले।
हर एक शे’र पे तो आफरीन कहता है।।

ये लफ्ज़ आते हैं दीदार हुस्न का करके।
ग़ज़ल “अनीस” तभी तो हसीन कहता है।।
अनीस शाह “अनीस”

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